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महाभारत के ये है वो शापित योद्धा, जिनसे टकराने का मद्दा शायद किसी में नहीं था, परन्तु समय ने उन्हें भी नहीं छोड़ा?
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News Subah Ki: महाभारत काल में एक से बढ़कर एक योद्धा एवं रथी महारथी थे। जिनमें कुछ योद्धा तो ऐसे भी थे कि जिनसे साक्षात काल भी टकराने से पहले सौ बार सोचते होंगे। वैसे तो महाभारत के युद्ध को धर्म और अधर्म की लड़ाई कहा जाता है, मगर महाभारत धर्म - अधर्म से ज्यादा छल और कपट की लड़ाई के लिए मशहूर हुआ था। महाभारत काल में सबसे ज्यादा चर्चित और शापित महारथीयो या योद्धाओं की चर्चा होगी तो बहुत सारे नाम आयेंगे। वैसे तो महाभारत में सैकड़ों महारथी शापित योद्धा थे, मगर ये जो महारथी योद्धा थे इनसे काल भी भयभीत हो जाता था। आइए उनके बारे में जानते है। इतिहास में जब भी कभी शापित योद्धा या महारथियों के नामों की चर्चा होगी तो उसमें सबसे ज्यादा चर्चा इन तीन सुर बीरो नामों की ही होगी। तो आइए जानते हैं, कि वो तीन महारथी कौन थे।
Highlights
1. महाभारत काल के तीन शापित महायोद्धा जिनसे साक्षात काल भी भयभीत थे।
2. तीनों में एक खास बात थी कि तीनों महारथी एक ही गुरु के शिष्य थे।
3. इन तीनों महारथियों के नाम क्रमशः गंगा पुत्र भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और अंगराज कर्ण है।
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वो तीनों महारथी एक ही गुरु के शिष्य थे?
यह तीनों योद्धा इतने पराक्रमी थे कि उनके टक्कर का कोई उस समय योद्धा नहीं था। तीनों ही अपने क्षेत्र के महाबली थे। लेकिन तीनों में खास बात ये थी कि, तीनों एक ही गुरु के शिष्य भी रहे थे, और तीनों ही विलक्षण प्रतिभा के धनी एवं विशेष शक्तियों से सुसज्जित थे। इन तीनों के उम्र में बहुत ही अधिक फर्क था तीनों 3 जेनरेशन के प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनके सामने काल भी आने से भयभीत हो जाता था। इनको युद्ध में मारने के लिए मौत को भी इनके निशस्त्र होने की प्रतीक्षा करना पड़ा था। ऐसे थे ये तीनो सुर-बीर पराक्रमी योद्धा। तो आइए हम इन तीन सुर-बीर योद्धाओं के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।
ये तीनो महारथी के नाम क्रमशः इस प्रकार है:
ऐसे तो महाभारत में सैकड़ों पराक्रमी महारथी थे, मगर ये तीनो की बातें खास थीं। युद्ध में तीनो पराक्रमी महाबली कौरवों के दल की तरफ से महाभारत में शामिल हुए थे। कहा जाता है कि मौत किसी का इंतजार नहीं करता। मगर महाभारत काल में इन पराक्रमी योद्धाओं ने इस कथन को मिथ्या साबित कर दिया था। ये तीनो महारथी इतने पराक्रमी योद्धा थे, कि मौत को गले लगाने के लिए काल को भी इनको निशस्त्र होने तक इंतजार करना पड़ा था।
1. गंगा पुत्र भीष्म
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गंगा पुत्र भीष्म पितामह |
पहले नंबर पर जिस योद्धा का नाम हम जानने जा रहे हैं, उनमें खास बात यह था, कि उनको इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उनके इच्छा के बगैर मौत उनके आस - पास भी नहीं फटकेगी। ये वरदान उनको अमरत्व जैसा ही मिला था, वो जीवन भर गद्दी के बफ़ादर और सेनापति के रूप में समर्पित रहे। वह कौरवों के तरफ से महाभारत के में पहले प्रधान सेनापति थे। जो सर्वाधिक दस दिनो तक कौरवों के प्रधान सेनापति के पद पर रहे थे। दसवें ही दिन इच्छामृत्यु प्राप्त भीष्म द्वारा पांडवों के विनय पर अपनी मृत्यु का रहस्य बता देते हैं, और तब इस नीति के तरह युद्ध में भीष्म के सामने शिखंडी को उतारा जाता है। प्रतिज्ञा अनुसार भीष्म किसी स्त्री, वेश्या या नपुंसक व्यक्ति पर शस्त्र नहीं उठाते हैं। वो है, महर्षि परशुराम शिष्य गंगापुत्र भीष्म!
गंगा पुत्र भीष्म मां गंगा और राजा शांतनु के पुत्र थे। उनका बचपन का नाम देवव्रत था, उन्होंने महर्षि परशुराम से अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा ली थी।और गुरु वृहस्पति से वेदों का ज्ञान हासिल किया था। अपने पिता के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा ली थी। देवब्रत ने सबसे बड़ा फैसला लिया था कि वो जीवन में कभी शादी नहीं करेंगे और न ही कभी राजा बनेंगे। उनका पूरा जीवन गद्दी पर बैठे हुए राजा के प्रति बफ़ादर और समर्पित रहेगा। उनका ये प्रतिज्ञा कोई मामूली प्रतिज्ञा नहीं भीष्म प्रतिज्ञा था। इसी प्रतिज्ञा के बाद दुनिया उन्हें भीष्म पितामह के नाम से जानने लगी।करीब 58 दिनों तक मृत्यु शैया पर लेटे रहने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गया तब माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ा था
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2. गुरु द्रोणाचार्य
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गुरु द्रोणाचार्य |
दूसरे नंबर पर जिस योद्धा का नाम हम जानने जा रहे हैं वो है, परशुराम शिष्य गुरू द्रोणाचार्य! गुरु द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज के पुत्र और ऋषि अंगिरस के वंशज थे।उन्नत सैन्य कलाओं और दिव्य हथियारों के स्वामी होने के बावजूद, द्रोण शुरू में गरीबी का जीवन चुनते हैं, जब तक कि उन्हें अपने मित्र पांचाल के राजा द्रुपद द्वारा अपमानित नहीं किया जाता है। अपने छात्रों की मदद से, उन्होंने द्रुपद को पकड़ लिया और अपने बेटे अश्वत्थामा के लिए आधा राज्य छीन लिया था।
गुरु द्रोणाचार्य महाभारत में 11वें दिन से लेकर 15वें दिन तक कौरव सेना के दूसरे सेनापति के रूप में कार्य करते हैं। आचार्य द्रोण युधिष्ठिर को पकड़ने में चार बार असफल होते हैं। जब वह युद्ध के मैदान में अपने बेटे की आत्मा को मुक्त करने के लिए हथियार छोड़ दिया ध्यान कर रहे थे, तब उनके छात्र और द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट दिया था। आचार्य भी एक ऐसे पराक्रमी योद्धा थे, कि जब तक उनके हाथों में शस्त्र सुशोभित रहता उन्हें कोई मार नहीं पाता ये विधि का विधान था।
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3. अंगराज कर्ण
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सूर्यपुत्र अंगराज कर्ण |
और तीसरे नंबर पर हम जिस योद्धा को जानेंगे वो और भी रोचक और दिलचस्प है। तो आइए जानते हैं उस महाबली के बारे मे। ये महारथी कवच और कुंडल धारी थे। इनके शरीर पर जन्म से ही कवच- कुंडल मौजूद था। इनके शारीर पर जब तक कवच कुंडल रहेगा तब तक कोई अस्त्र या शस्त्र इन्हें नहीं मार सकता ये वरदान था। वो भी है, परशुराम शिष्य सूर्यपुत्र कर्ण!कर्ण का जीवन शुरू से अंत तक बहुत ही शापित तथा रहस्यमी रहा है। आइए जानते हैं उस सुर बीर योद्धा के बारे मे। कर्ण को उसके गुरु परशुराम और पृथ्वी माता से श्राप मिला था। इसके अतिरिक्त भी कर्ण को बहुत से श्राप मिले थे। आज भी लाखों हिन्दुओं के लिए कर्ण एक ऐसा योद्धा है जो जीवन भर दुखद जीवन जीता रहा। उसे एक महान योद्धा माना जाता है, जो साहसिक आत्मबल युक्त एक ऐसा महानायक था जो अपने जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से रहा।
विशेष रूप से कर्ण अपनी दानप्रियता के लिए प्रसिद्ध है। वह इस बात का उदाहरण भी है कि किस प्रकार अनुचित निर्णय किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और उत्तम गुणों के रहते हुए भी किसी काम के नहीं होते। कर्ण को कभी भी वह नहीं मिला जिसका वह अधिकारी था, पर उसने कभी भी प्रयास करना नहीं छोड़ा। भीष्म और भगवान कृष्ण सहित कर्ण के समकालीनों ने यह स्वीकार किया है कि कर्ण एक पुण्यात्मा है, जो बहुत विरले ही मानव जाति में प्रकट होते हैं। वह संघर्षरत मानवता के लिए एक आदर्श है कि मानव जाति कभी भी हार ना माने और प्रयासरत रहे। जब भी कर्ण को उनकी दी हुई शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, उस दिन वह उसके काम नहीं आएगी।
Disclaimer: लेख इंटरनेट पर आधारित है। इस लेख में दी गई जानकारी 100 प्रतिशत सही नहीं हो सकती है। इसलिए इस पर कोई भी दावा या क्लेम करना अमान्य होगा
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